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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 319 वह राजकन्या रूपमती काष्ठभक्षण करने के लिये राजा विक्रमादित्य आदि परिवार सहित नगर के बाहर आ गई / वह चिता की प्रदक्षिणा करके उसमें प्रवेश करने ही वाली थी कि विक्रमादित्य का पुत्र विक्रमचरित्र वहाँ पहुँच गया। माता पिता से शुभ मिलन और रूपमती से लग्न कुमार का आगमन सुनकर राजा आदि सब लोग प्रमुदित हुए। विक्रमचरित्रने आकर अत्यन्त भक्ति से अपने मातापिता के चरणकमलोंमें प्रणाम किया, फिर राजा विक्रमादित्यने बडे धूमधाम से रूपमती और शुभमती का नगर प्रवेश करवाया और शुभ लग्न में अत्यन्त उत्सव सहित रूपमती से अपने पुत्र का विवाह करा दिया। फिर दोनों पुत्र वधूओं को रहने के लिए दो सप्त मंजिले महल दिये। अनन्तर विक्रमचरित्र ने अपने माता-पिता को आदि से अन्त तकका अपना सब वृत्तांत कह सुनाया, दीपक अपने तेज से प्रत्यक्ष वस्तु को ही प्रकाशित करता है / परन्तु निष्कलंक पुत्र अपने पूर्वजों को भी अपने गुणोंसे प्रकाशित कर सकता है। .. पाठक गण ! विक्रमचरित्र का रोमाञ्च पूर्ण परिचय इस पंचम सर्ग में आप पढ़ चुके / मनमें सोचिये कि विक्रमचरित्र कितना पुण्य शाल है / पूर्वकृत पुण्य से ही सभी प्राणियों को लक्ष्मी एवं भोज्य . . वस्तु में प्राप्त होती हैं / जहाँ भी विक्रमचरित्र जा पचहता है वही सभी को प्रिय हो जाता हैं और इस संसार में सुख देने वाले पदार्थो की उसे प्राप्ति हो जाती हैं / इसका तात्पर्य यही है कि सदैव परोपकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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