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________________ विक्रम चरित्र तब शुभमतीने अपना सब हाल मातापिता के आगे कहा और कहाकि मैंने अपने शील की रक्षा के लिये अपने स्वरूप का बिलकुल परिवर्तन करलिया था। राजकन्या, सिंह और धर्मध्वज का कार्य मैंने इसी आनन्दकुमारके वेष में किया / राजा महाबल ने पूछा कि 'तुम किस वर को वरण करोगी?' तब शुभमती ने कहा कि ' मैं विक्रमादित्य के पुत्र विक्रमचरित्र को ही अङ्गीकार करूँगी / पुनः महाबल ने पूछा कि 'हे पुत्री ! वह यहाँ इस समय कैसे आयेगा ?' शुभमती ने उत्तर दिया कि विक्रमादित्य का पुत्र विक्रमचरित्र इसी नगर में है / मैंने धर्मध्वज से पहले ही उस विक्रमचरित्र को बरण करलिया है / इसलिये मेरे चित्त में अब वही अच्छा जान पड़ता है।' राजा विक्रमचरित्र व शुभमती का शुभ मिलन तथा लग्न तव महाबल ने पूछा कि 'विक्रमचरित्र कहाँ है ? तब शुभमती ने अपने पिता को विक्रमचरित्र के रहने का स्थल बतलाया। राजा महाबलने अत्यन्त प्रसन्न मन से विक्रमचरित्र को अनेक प्रकारसे उत्सव करके अपनी पुत्री शुभमती का पाणिग्रहण करादिया / इसकेबाद शुभमती ने अपना हरण किसप्रकार और कैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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