________________ 312 विक्रम चरित्र इस पर्वत पर प्राणत्याग करने के लिये आया हूँ। तुम मुझ को इस समय मरने दो यह ही मेरी इच्छा है। आनन्दकुमार ने कहा कि 'मूर्ख भी स्त्री के लिये प्राणत्याग नहीं करता। स्त्रियाँ कई बार मिलती हैं, परन्तु प्राण पुनः नहीं मिलते / मनुष्य-जन्म ही अत्यन्त दुर्लभ है / उस में भी उत्तम जाति में, उच्च कुल में जन्म होना तो दुष्प्राप्य ही है। इस संसार में गये हुए प्राणों की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। स्त्री का मरजाना ही अच्छा है। उसके लिये प्राणत्याग तो मूर्ख लोग करते हैं। बुद्धिमान् जंजाल हट जाने से प्रसन्न ही होते हैं। स्त्रियाँ पुरुष के हृदय को वशीभूत करके उस का सब प्रकार से तिरस्कार और भर्त्सना करती है, अपार समुद्र का कोई पार पासकता है परन्तु दुश्चरित्र स्वभाव की कुटिल स्त्रियों का कोई पार नहीं पासकता / अत एव तुम अपने मन में तनिक भी खेद मत करो। तुम को मैं शीघ्र ही एक अच्छी स्त्री दिलाऊँगा। इस प्रकार सान्त्वना पाकर वह सिंह नामक किसान अपने स्थान को गया / वह आनन्दकुमार भी अपने स्थान पर चला गया। दूसरे दिन वल्लभीपुर के राजा 'महाबल' को पर्वत पर प्राणत्याग करते हुए देखकर सेवकों ने उसको भी आनन्दकुमार के पास उपस्थित किया / राजा के पास में आजाने पर उसे आनन्दकुमार ने पूछा कि 'आप किस लिये अपना प्राणत्याग करते हैं ? तब महाबल ने अपनी स्त्री के हरण होने का सब वृत्तान्त कह सुनाया।' यह सब सुन कर आनन्दकुमार ने कहा कि 'आप मन में खेद न करें। यहाँ रहते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org