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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 311 भर्त्सना भी करती हैं। इस प्रकार क्या क्या नहीं करती? असत्य, साहस, माया, मूर्खता, अत्यन्त लोभ करना, स्नेह रहित होना तथा निर्दयता ये सब दोष स्त्रियों में स्वभाव से ही होते हैं। ___ आनन्दकुमार की इस प्रकार की बातें सुनकर पुनः धर्मध्वजः ने कहा कि 'मानभंग होने से मैं लज्जित हूँ / इसलिये हे नरोत्तम ! मैं अपने नगर को किसी भी प्रकार नहीं जा सकता / ' तब आनन्दकुमारने पुनः कहा हे धर्मध्वज ! मैं तुम को अत्यन्त सुन्दर कन्या देकर तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण करूँगा। इसलिये यहाँ तुम अब अपने मन में खेद मत करो और यहीं रहो।' इसप्रकार अनेक युक्तियों से उसको समझा करके आनन्दकुमार अपने स्थान पर चला आया / सिंह का आगमन दूसरे दिन सिंह नामक किसान को पर्वत पर प्राणत्याग करते हुए देख कर आनन्दकुमार के सेवक उसे आनन्दकुमार के पास ले गये। अपने पास आये हुए उस किसान को आनन्दकुमार ने पूछा कि 'हे किसान ! तुम यहाँ प्राणत्याग करने के लिये क्यों आये हो ?' तब सिंहनामक किसान कहने लगा 'मैंने एक दिन वल्लभीपुर से एक श्रेष्ट कन्या को विद्यापुर के अपने क्षेत्र में लाकर रखी थी। जब तक मैं गाँव में जाकर लौटा तब तक उस कन्या को किसी देव या दानव ने चुरालिया / मेरी पहली स्त्री भी रुष्ट होकर अपने पिता के घर चली गई। दोनों स्त्रियों से अलग होने से मैं अत्यन्त दुःखित होकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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