________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित हुए ही शीघ्र आप को अपनी कन्या मिल जायगी।' पाठकगण ! आप को ख्याल ही होगा कि यह आनन्दकुमार ही राजा महाबल की पुत्री है। परन्तु महाबल ने पुरुष-वेष धारण करके बोलती हुई अपनी पुत्री को बदला हुआ रूप होने के कारण जरा भी नहीं पहचाना। फिर दूसरे दिन महाराजा विक्रमादित्य के पुत्र विक्रमचरित्र को रैवताचल पर्वत पर प्रागत्याग करते हुए देख कर आनन्दकुमार के सेवक लोग उसे आनन्दकुमार के समीप ले गये। विक्रमचरित्र के अपने पास आजाने पर आनन्दकुमार ने पूछा कि 'आप क्यों व्यर्थ ही अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं।' तब विक्रमचरित्र ने अपने प्राणों को छोड़ने के लिये पर्वत तक आनेका आदि से अन्त तक सब वृत्तान्त कह सुनाया और कहने लगा कि ' मैं लज्जा के कारण अपने नगर में नहीं जासकता। क्यों कि मानभंग होने से मुझको देख कर सब लोग हसेंगें।'' तव आनन्दकुमार ने धर्मध्वज के समान ही उसको भी अनेक युक्तियों द्वारा समझा दिया / अन्त में कहा कि 'आप मन में खेद न करें। आप को यहीं पर शीघ्र ही अपनी प्रिया मिल जायगी।' धर्मध्वज और सिंह का लग्न - इस प्रकार सब को युक्ति से समझा बुझा कर आनन्दकुमार प्रसन्न चित्त से अपने स्थान पर चला गया। दूसरे दिन इन सब को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org