________________ 290 विक्रम चरित्र सहित राजमहल में पहुँचा देती हूँ, जब धर्मध्वज तुम से विवाह करने के लिये चोरीमंडप में आ जावे, तब तुम राजमहल के पीछले द्वार पर आभूषण वस्त्र आदि लेकर शीघ्रता से निश्चय ही आ जाना। यह राजपुत्र अश्व पर आरूढ होकर उसी समय वहाँ उपस्थित होगा. और तुमको लेकर अपने स्थान पर जायेगा और वहीं विवाह कर लेना। इस प्रकार निश्चय कर के श्रेष्ठी कन्या लक्ष्मी ने राजपुत्री को भोजनादि कराकर सन्ध्या समय में उत्सव सहित राजा के महल में पहुँचा दिया। राजकन्या महारानी को सुप्रत कर लक्ष्मी अपने घर आई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org