________________ चोइसवाँ प्रकरण शुभमती यथासमय धर्मध्वज अश्वारूढ होकर शुभमती से विवाह करने के लिये बड़े ठाठमाठ से रवाना हुआ / विक्रमचरित्र भी अश्वपर आरूढ होकर तथा लक्ष्मी से प्रेमपूर्वक मिलकर पूर्व निश्चित संकेत स्थान पर उपस्थित हुआ। उधर राजपुत्री शुभमती बाहर जाने का अवसर ढूँढने लगी, उसे कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था, अतः वह विचार करने लगी कि इस समय मेरा पूर्वजन्म का दुष्कर्म उपस्थित हो गया है / निश्चय ही वह राजपुत्र संकेत स्थान पर आगया होगा। इसलिये अब कोई छल-कपट कर के यहाँ से चुपचाप निकल जाऊँ। फिर वह राजपुत्री अपनी सखी से बोली कि "मुझ को इस समय शौच जाने की शंका हुई है / अतः में जाती हूँ।' .... उसकी सखी कहने लगी कि 'तुम्हारा पति धर्मध्वज द्वार पर आ गया है और तुम को इसी समय देहचिन्ता हो गई। अब ऐसी अवस्था में क्या होगा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org