________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 289 दूंगी / लक्ष्मी ने तुरंत ही शीतोपचार आदि करके उन दोनों को सचेत किया। फिर वे दोनों ही लक्ष्मी से कहने लगे कि 'हमारा विवाह करा दो, अन्यथा हमारी मृत्यु हो जायगी।' इन दोनों की यह बात सुन कर श्रेष्ठी कन्या लक्ष्मी चिन्ता से व्याकुल होकर सोच कर ने लगी कि 'अब क्या किया जाय ? जैसे एक तरफ व्याघ्र हो और दूसरी और नदी हो, तो प्राण संकट में पड़ जाते हैं। क्योंकि मनुष्य व्याघ्र से बचने जाता है तो नदी में गीर जाता है और नदी से बचने पर उसे व्याघ्र भक्षण कर लेता है। ठीक इसी प्रकार इस समय मेरे लिये धर्मसंकट उपस्थित हो गया है। __ "जो अर्थ (धन) के लिये आतुर है उस का न कोई मित्र होता है और न कोई बन्धु ही होता है / क्षुधातुर व्यक्ति के शरीर में बिलकुल ही तेज नहीं रहता, चिन्ता से आतुर व्यक्ति . को सुख तथा निद्रा नहीं होती और कामातुर मनुष्य को भय और लजा नहीं होती।" अंतमें इस समस्या का अपने मन में उपाय हुँढकर लक्ष्मी ने कहा कि 'हे राजपुत्री ! इस समय तो मैं तुम को उत्सव - अर्थातुराणां न सुहृदन्न बन्धुः, क्षुधातुराणां न वपुर्न तेजः / कामातुराणां न भयं न लजा, चिन्तातुराणां न सुखं न निद्रा // 312 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org