________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 279 मंत्री की बात सुनकर राजा व्याकुल होकर अपने हृदय में सोचने लगा कि अपने घर का शोषण करने वाली तथा दूसरे के घर को सुशोभित करने वाली कन्या को जिसने जन्म नहीं दिया, वही इस लोकमें वास्तविक सुखी है। क्योंकिः कन्या के जन्म लेते ही एक महान चिन्ता उपस्थित हो जाती है कि यह कन्या किसको दें और देने पर सुख प्राप्त करेगी या नहीं। अतः कन्या का पिता होना ही कष्ट है / / कन्या के जन्म लेते ही बड़ा शोक होने लगता है। जैसे जैसे कन्या .बढती है वैसे वैसे चिन्ता भी बढती ही रहती है। उसके विवाह करने में भी बहुत बडा दण्ड देनाखर्चा करना पडता है। अतः कन्या का पिता होना महान् कष्टप्रद ही है। इस प्रकार राजा महाबल अनेक तर्क वितर्क करके भट्टमात्र के प्रति सम्मानपूर्वक इस प्रकार बोला कि 'हे भट्टमात्र ! मेरा मंत्री विवाह का निश्चय करके आया है तथा वर पक्ष के लोग विवाह करने के लिये यहाँ आयेंगे / लोगोंमें यही व्यवहार है कि जिस वरके लिये पहले कन्या दे दी उसी वर के साथ कन्या का लान करते हैं, इस में कोई सन्देह नहीं। क्यों कि आप स्वयं विचारवान् हैं। मैं इस विषय में आपसे अधिक . + जातेति चिन्ता महतीति शोकः, .... कस्य प्रदेयेति महान् विकल्पः / दत्ता सुखं स्थास्यति वा न वेति, कन्यापितृत्वं किल हन्त ! कष्टम् // 233 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org