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________________ . 21. के लिये कहकर अवधूत खुद जाग्रत अवस्थामें पलंग पर. खड्ग लेकर लेट रहे। - आधी रात होते ही अग्निवैताल राजवी के पास आया। विनित राजवीने स्खे हुए सुंदर पक्वान्न आदि स्वीकारने को विनति की जिससे असुरको राजाका विनितभाव मालूम हुवा जिससे प्रसन्न होकर आजसे उपद्रव नहीं करनेका आशीर्वाद देकर हमेशा के लिये अवन्तीनगरीमें अवधूतने शांति स्थापित की। . प्रकरण सातवा . . . . पृष्ठ 42 से 47 तक -- विक्रम का पराक्रम आ, मुग्ध प्रजा प्रातः होते ही राजाका हाल सुनने को इधर-उधर परस्पर मीलने लगी और अवधूत को जैसा के तैसा देखकर खूब प्रसन्न हुई और उसकी खुशालीमें अवन्तीनगरीमें आनंद--महोत्सव मनाया गया। उधर राजा और असुर का प्रतिदिन परिचय बढने लगा परस्पर गाढ मित्रता हो गई और राजवीने युक्तिसे असुर में शक्तियाँ क्या क्या है यह जानने के लिये असुरको पूछ लीया / .. असुर से राजवीने उनकी शक्ति जानी और अपनी आयुष्य के विषयमें प्रश्न क्रिया और नबानवे वर्ष की उम्मर के लिये याचना कि, * 'लेकिन असुरने यह शक्ति कोसीमें भी नहीं होती है एसा कहकर दोनोने परस्पर मित्रता की जड कायम की / हर्षके आवेशमें राजाने दूसरे दीन बली तैयार नहीं किया / नित्य नियमानुसार अग्निवैताल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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