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________________ अपना बलि भक्षण करने के लिये आधी रात्रिमें राजमहलमें आया 'राजाको मारनेकी धमकी दी। लेकिन सो वर्षकी आयु अपने ही मुखसे अग्निवैतालने राजवीको बतलाई थी जिससे राजा निर्भय हुआ, राजा अग्निवैतालसे लड लेनेके लिये बोला / पराक्रमी राजाका पराक्रम देखनेसे अग्निवैताल प्रसन्न हो गया और जब जब जरूरत हो तब तब स्मरण मात्रसे हाजर होनेका वचन देकर असुर अपने स्थान गया / प्रकरण आठवा . . . . पृष्ठ 48 से 55 तक . अवधूत कौन ? इस प्रकार अवधूत का पराक्रम सुनकर अवन्तीकी प्रजा अवधूत का भेद खोलने के लिये इन्तेजारी करतो थो एकाएक राजसभामें भट्टमात्रने आकर सब भेद खोल दिया और महारानी भी यह समाचार सुनते ही प्रसन्न हो गई और राजा विक्रमादित्यने यथा तथा स्वरूपमें अन्तःपुरमें जाकर अपनी माताके चरण छूये और आशीर्वाद लिया और उस दिनसे हमेशा माताको नमस्कार करके ही राजा राज्यसिंहासनारूढ होने लगे। फिरसे अवन्ती की प्रजाने बहुत बड़ा उत्सव किया और राजाका राज्याभिषेक किया और राजाने भी यथायोग्य पारितोषिक दीया और भट्टमात्र को महामात्य बनाया गया। पराक्रमसे धीरे धीरे अन्य राजवीओंको अपने आधीन किये। बाद में माता का स्वर्गवास हुआ। जिस से शोकसागर में डूबा हुआ राजा के साथ प्रजाभी दुःखित हुई / महामात्यादि के द्वारा विक्रमादित्य को शोक करना व्यर्थ है इसके विषय में गहरा उपदेश दिया गया और प्रकरण समाप्त किया गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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