________________ क्षत्रियोंको गद्दीनशीन करते गये लेकिन कोई भी अग्निवैताल के उपद्रषकों शांत न कर सके / इस समय क्षिप्रा नदीके तटपर जो पूर्वमें अपमानित होने के कारण चला गया हुआ विक्रम अवधूत रूपमें वापस आया था उसके दर्शन के लिये सारी अवन्ती की प्रजा आने लगी राजमंत्री भी आये और सब हाल सुनाया ब उनसे अवधूतने राज्य की मांग की और विश्वास दिलाया की मैं प्रजाकी रक्षा करूँगा और राज्य को अच्छी तरह संभालँगा। प्रकरण छठा . . . . पृष्ठ 36 से 41. तक विक्रम का राज्यतिलक राजा के विना शून्य पड़ा हुआ राज्यसिंहासन पर आरूढ करने ' के लिये सामन्तादि लोक बडे समारोह के साथ नगर बहार जाकर अवधूत को राज्यसवारी द्वारा शहरमें लाये और राजभवन में आकर अवधूतने राज्यसिंहासन शोभाया। सहर्व सभाजनोंने अवधूत को राज्यतिलक किया। उपद्रवित अधम असुर को यह अवधूत ही ठार करेगा ऐसा मानती हुई राजसभा आनन्दपूर्वक बरखास्त हुई और रात होते ही राजवी के कथनानुसार मेग-मिठाई आदि अच्छे अच्छे पक्वान्न तैयार करके अग्निवैताल असुरके लिये बली स्खके और सुवासित पुष्पादि, दीपक आदिसे राजमहल शोभाया गया / राजबी को उसके भाग्य के उपर छोडके अवन्ती की सारी प्रजा निद्राधीन हुई / रक्षकों को सावधान रहने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org