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________________ 252 विक्रम चरित्र राक्षस समूह का संहार किया। अतः सच बात यह है कि किया सिद्धि महान् आमाओं को अपने आत्मबल से होती है, सामग्री के बल से नहीं। . इसी प्रकार सूर्य के रथ में एक ही चक्र है तथा रथ को वहन करने वाले घोड़े साँप से बँधे हुए हैं। मार्ग आकाश जैसा शून्य है जिस में कोई अवलंब नहीं और रथ को चलाने वाला सारथी भी चरण हीन है, फिर भी सूर्य प्रतिदिन अपार आकाश को पार करता है। इससे भी यही सिद्ध होता हैं कि महान् व्यक्तियों को क्रिया सिद्धि अपने आत्मबल से ही मिलती है सामग्री के बल पर नहीं / हे राजन् ! मेरी प्रार्थना है कि मैं एक मंत्र सिद्ध करने के लिये अनुष्ठान कर रहा हूँ, उस में सात्त्विकों में अग्रणी आप उत्तर साधक बनकर सहाय करें। राजा का उत्तर साधक बनना राजा विक्रमादित्य उस योगी का वचन मानकर तलवार लेकर. निर्भयता से उस के साथ रात्रि में वन के मध्य में पहुँचे। मैं एकाकी हूँ, अथवा असहाय हूँ, मेरे साथ में कोई परिवार सेना नहीं है इत्यादि चिन्ता सिंह को स्वप्न में भी नहीं होती, उसी तरह निर्भय x विजेतव्या लंका चरणतरणीयो जलनिधि विपक्षः पौलस्त्यो रणभुवि सहायाश्च कपयः। तथाप्याजौ रामः सकलमवधीत् राक्षसकुलं / क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे // 35 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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