________________ विक्रम चरित्र पढ़ कर तथा इस के दुर्दमनीय साहस, अवसर प्रत्युत्पन्न मति ( हाजर जवाबी) तथा निर्भयता को देखकर आश्चर्य चकित हुए होंगे। परन्तु जो पुण्यात्मा है, जिसने देवी को प्रसन्न कर लिया है और स्वयं बुद्धिमान् है तथा विशुद्ध बुद्धि से छल रहित कार्य करता है उस के लिये ऐसा कोई काम असम्भवित नहीं है। इस चरित्र के पढ़ने से आप लोगों को अत्यन्त कौतुक तथा पूर्ण मनोरञ्जन हुआ होगा। तथा पिता की अपेक्षा पुत्र को ही अधिक चमत्कार दिखाने वाला समझे होंगे / अब आगे पुनः इसकी माता को लाने आदि की तथा विक्रमादित्य के विषय में इस प्रकार की ही आश्चर्य भरी तथा मनोरञ्जक बातें आप लोगों को पढ़ने के लिये मिलेंगी। तपागच्छीय-नानाग्रन्थरचयिता-कृष्णसरस्वतीबिरुदधारक-परमपूज्य-आचार्यश्री-मुनिसुंदरसूरीश्वरशिष्य-गणिवर्य-श्रीशुभशीलगणि विरचिते श्रीविक्रमचरिते चतुर्थः सर्गः समाप्तः नानातीर्थोद्धारक-आबालब्रह्मचारि-शासनसम्राटूश्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरशिष्य-कविरल-शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि-जैनाचार्य-श्रीमद्विजयामृतसूरीश्वरस्य तृतीयशिष्यः वैयावच्चकरणदक्षमुनिश्रीखान्तिविजयस्तस्य शिष्यमुनिनिरंजनविज़येन कृतो विक्रमचरितस्य हीन्दीभाषायां भावानु वादः, तस्य च चतुर्थः सर्गः समाप्तः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org