________________ 238 विक्रम चरित्र से चोर को पकड़ने के लिये प्रातःकाल से भ्रमण कर रहा है। यदि वह अपने ज्ञान से यह जान लेगा कि तुम मेरे घर में स्थित / हो तो तुम्हारा तथा मेरा अवश्य ही अनिष्ट होगा।" वेश्या की बात सुन कर चोर ने कहा-'तुम अपने मन में जरा भी मत डरो / मैं उसी प्रकार काम करूँगा, जिससे वह मुझ को . जान नहीं सकेगा। उस चोर का इस प्रकार का साहस देख कर वह वेश्या विचार करने लगी कि यह अवश्य कोई विद्याधर है ? :अथवा देव या दानव है ? अन्यथा कैसे इस प्रकार के संकट के उपस्थित होने पर भी इस के मन में इतना साहस हो सकता हो। अग्निवैताल का खड्ग हरण देवकुमार वेश्या से कह कर नगर में घूमने के लिए उसके घर से निकला / वह अदृश्यीकरण विद्या से अदृश्य होकर नगर में घूमता हुआ अग्निवैताल के सामने पहुँचा और अग्निवैताल के हाथ से अदृश्य रूप धारण किये हुए खड्ग ले लिया। अग्निवैताल उस के पुण्य प्रभाव से उस का रूप तथा स्थान कुछ भी ज्ञानदृष्टि से नहीं जान सका / इस प्रकार वह चोर अग्निवैताल का खड्ग लेकर नगर में भ्रमण करके धूर्त के समान पुनः वेश्या के घर में आ पहुँचा / और वेश्या के पूछने पर अपना सब वृत्तान्त कह सुनाया। वेश्या अपने मन में विचारने लगी कि यह निश्चय ही कोई देव DETECIR28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org