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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित अथवा विद्याधर है / इसलिये इस के पास में ऐसी चमत्कार करने वाली शक्ति अवश्य है। इधर अग्निवैताल तीन दिन तक नगर में भ्रमण करते करते अत्यन्त कृश शरीर तथा उदासीन हो कर भी जब चोर को नहीं पकड़ सका तब चौथे दिन राजा के समीप आकर तथा दीन हो कर बोला —'हे राजन् ! जो चोर चोरी करता है वह कोई विद्याधर है अथवा असुर है / मैं तो ऐसा समझता हूँ कि वह किसी के वश में नहीं आ सकता।' यह बात सुन कर राजा अग्निवैताल से बोला-" यह चोर कोई धूर्तराज है। वह व्यक्ति या देव किसी को भी अपना रूप देखने नहीं देंगा / यदि वह किसी से मिलेगा तो भी सरल स्वभाव से ही मिलेगा / इसलिये आज सारे नगर में पटह बजवाना चाहिये और कहना चाहिये कि जो कोई पटह का स्पर्श करेगा और चोर को पकड़ेगा उसको राजा आधा राज्य देकर उस के मनोरथ को पूर्ण करेंगे।" . राजा की यह बात सुन कर मंत्री लोग बोले--कि इस समय यही करना उचित है / क्योंकि वह अत्यन्त बलवान तथा छली है / पटह बजा कर ऐसी घोषणा किये बिना वह चोर पकड़ा नहीं जा सकता / सब की सम्मति होने पर राजा ने पटह बजवा कर घोषणा कराने का निर्णय किया / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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