________________ 236. विक्रम चरित्र जाने पर पत्थर को ही काटने जाता है। परन्तु सिंह बाण से आहत होने पर जिसने वाण चलाया है, उस व्यक्ति को खोजता है / मनुष्य अपने मन में जितने सुखों की इच्छा करता है, उतने सुख किस को मिलते हैं ? किसी को नहीं / यह समस्त संसार अदृष्ट के अधीन है। इसलिये हमें सन्तोष है।' ___ तत्पश्चात् मंत्रियों से लाये हुए उत्तम अश्व पर नवीन वस्त्र, खड्ग आदि से भूषित होकर राजा सवार हुए तथा अमात्य आदि व्यक्ति यों के साथ जैसे उदयाचल पर्वत पर सूर्य आते हैं, उसी प्रकार अपने आवास को प्राप्त हुए। राजा विक्रमादित्य ने अपने मंत्रियों से कहा- यह चोर अत्यन्त बलवान् मनुष्य है तथा महान् विद्याओं को धारण करने वाला है, ऐसा लगता है / वह कौतुकार्थी होकर अथवा मेरा राज्य हरण करने की इच्छा से इस समय मंत्री आदि हमारे सब व्यक्तियों की दुदर्शा करता है।' अग्निवैताल का आना ___ इस समय अनेक प्रकार के कौतुक तथा नृत्य आदि देख कर वहाँ देव द्वीप से अग्निवैताल लौट आया और राजा विक्रमादित्य से मिला / अग्निवैताल को आया हुआ देखकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ तथा अग्निवैताल से बोला कि 'तुम ठीक समय पर आ गये हो / यह बहुत अच्छा हुआ / ' क्योंकिः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org