________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 229 तथा स्वयं एक वृक्ष की आड में छुप गया जब राजा विक्रमादित्य वहाँ पहुँचे तो कूप में किसी चीज के गिरने का शब्द सुना तथा उस के ऊपर वस्त्र की गठरी देखी। राजा ने अपने मन में सोचा कि निश्चय ही वह चोर भय से कूप में कूद गया है। उसने कूप में छिप कर अपने प्राण बचाने की चेष्टा की है / परन्तु मैं कूप में प्रवेश कर इस चोर को अवश्य पकडूगा। इस समय यह चोर कुछ भी नहीं कर सकता। यह चोर आज निश्चय मेरे हाथ में आगया है / राजा का कूप में उतरना व देवकुमार का नगर में आ जाना इस प्रकार सोचकर राजा विक्रमादित्य शरीर से अलंकारादि निकाल कर तथा ऊर्ध्व वस्त्र और तलवार कुए के ऊपर ही छोड़ कर चोर को पकड़ने के लिये घोड़े को वृक्ष के साथ बांध कर कूप में कूद पड़ा। MOTION MRI RAAT 2 /ALE 1 ceco ORODRO1002 कर XN A T 4F Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org