________________ विक्रम चा 230 विक्रम चरित्र इधर वह चोर शीघ्रता से राजा विक्रमादित्य के वस्त्र तथा तलवार लेकर अश्व पर चढ़ बैठा तथा वहाँ से नगर के द्वार पर पहुँचा और द्वारपाल से बोला- द्वारपाल ! मैं ( विक्रमादित्य ) आया हूँ / द्वार खोल / ' द्वारपाल ने घोड़े का हिनहिनाना सुन कर राजा विक्रमादित्य ही आया है, ऐसा समझ कर शीघ्रता से द्वार खोल दिया / तब वह चोर राज वेष में प्रवेश करके द्वारपाल से बोलाः" बहुत खोज करने पर भी चोर को कहीं नहीं देखा / इसलिये मैं वापस लौट कर आया हूँ। मैं इस समय अपने स्थान पर जाऊँगा / तुम द्वार बन्द करके खूब सावधानी से रहना / कदाचित् वह चोर आयगा तो छल से ऐसा बोलेगा कि 'द्वारपाल ! मैं विक्रमादित्य हूँ इसलिये द्वार खोलो / ' परन्तु उस समय तुम किसी प्रकार भी द्वार मत खोलना / वह प्रतिदिन रात्रि में नगर में चोरी करता है तथा कहीं एकान्त में जाकर गुप्त रीति से निवास करता है। इसलिये तुम सतत सावधान रहना तथा किसी प्रकार द्वार मत खोलना / " फिर वह बाजार में आया और हर्ष से शब्द करते हुए अश्व को शीघ्रता से छोड़ दिया। राजा के वस्त्र आदि लेकर वह काली वेश्या के द्वार पर उपस्थित हुआ और पूर्व कथित संकेत के अनुसार दरवाजा खोल देने पर घर में पहुँचा। वेश्या के आगे वह इस प्रकार बोला- राजा विक्रमादित्य के ये-सब वस्त्र अलंकारादि वस्तु हरण करके लाया हूँ।' - यह सुन कर आश्चर्य चकित होकर वेश्या ने पूछाः-" तुमने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org