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________________ 228 विक्रम चरित्र चोरी गई हैं ? / ' रजक राजा को पहचान कर कहने लगा कि-' हे राजन् ! मैं इस समय आपके वस्त्र अपने मस्तक के नीचे रख कर सो रहा था। मैंने सोचा था कि प्रातःकाल होने पर इन्हें धो दूँगा / परन्तु कोई चोर चुपचाप उन्हें चुरा कर ले गया है।' राजा द्वारा चोर का पीछा करना - रजक की बात सुन कर राजा बोला कि 'तुम इस समय अधिक ऊँचे स्वर से मत चिल्लाओ / मैं उस चोर को जाते हुए वस्त्र सहित चुपचाप पकड़ लूँगा।' फिर राजा अश्व पर बैठा, बड़ी शीघ्रता से चुपचाप चोर के पाँवों का अनुसंधान करता हुआ नगर के द्वार पर पहुँचा द्वारपाल से पूछा कि 'इस द्वार से इस समय नगर के बाहर कोई गया है अथवा नहीं ? ' इस प्रकार राजा के पूछने पर द्वारपाल ने रजक के जाने की बात कही। द्वारपाल की बात सुन कर राजा ने कहा-'निश्चय ही वह चोर ही इस समय गया है / इसलिये शीघ्र द्वार खोलो / मैं उस के पीछे पीछे ही जाऊँगा, जिस से वह पकड़ा जायगा।' द्वारपाल से कहा कि मैं जब तक चोर को पकड़ कर आता हूँ, तब तक तुम द्वार को बन्द कर यहाँ पर सावधानी से जागते रहना।' __राजा की बात सुन कर द्वारपाल बोला कि -- आप के कहने के अनुसार ही करूंगा।' इस प्रकार द्वारपाल की बात सुन कर राजा स्थान स्थान पर इधर उधर देखता हुआ उस कूप के प्रति चला। ___जब चोर ने देखा कि राजा कूप के नजदीक आ रहा है, तब उसने एक बहुत बड़ा पत्थर लाकर कूप में जोर से गिरा दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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