________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 227 में प्रवेश किया और उस धोबी के मस्तक के नीचे से चालाकी पूर्वक सब वस्त्र ले लिये फिर गर्दभ की पीठ पर सब वस्त्रों को रख कर धीरे धीरे नगर के द्वार पर पहुँचा। वहाँ चोर द्वारपाल से बोला कि 'शीघता से द्वार खोलो। मुझे राजा के वस्त्रों को शीघ्र ही धोने के लिये इसी समय कूप पर जाना है।' . . .. .. : द्वारपाल बोला कि 'राजा ने मुंझ को आज्ञा दी है कि सूर्योदय के पहले नगर का द्वार किसी प्रकार भी मत खोलना / इसलिये हे रजक ! मैं इस समय नगर का द्वार नहीं खोल सकता / ' धोबीरूप चोर का नगर बाहर जाना __ द्वारपाल की बात सुन कर कपटी रजक (चोर) बोला कि 'मैं यहाँ राजा के सब वस्त्र छोड़ कर जाता हूँ। प्रातःकाल जब राजा या राजपुरुष वस्त्रों को यहाँ गिरा हुआ देखेंगे तो धन आदि हरण कर के तुझे ही दण्ड देंगे, मुझे क्या ? / ' . रजक की यह बात सुन कर द्वारपाल डर गया तथा उसने नगर का द्वार खोल दिया / इस के बाद वह कपटी रजक कूप के समीप पहुँचा / वहाँ पहुँच कर सब वस्त्रों को गधे की पीठ पर से उतार कर नीचे रखा तथा इधर उधर देखते हुअ ठहर गया / जब रजक की निद्रा अङ्ग हुई, तब राजा के वस्त्रों को न देख कर अत्यन्त उच्च स्वर से बोलने लगा कि 'अभी ही चोर चुपचाप राजा के वस्त्रों को लेकर चला गया है।' उस का उच्च स्वर घूमते हुए राजाने सुना और वहाँ धोबी के पास आ गया तथा पूछा कि क्या क्या चीजें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org