________________ 226 विक्रम चरित्र नगर भ्रमण इस प्रकार कह कर राजा खड्ग लेकर तथा गुप्त वेश धारण कर के चोर को पकड़ने के लिये गुप्त रूप से नगर में भ्रमण करने लगा। काली बेश्या चोर से बोली कि-'तुम को अब इस समय यह रहना नहीं चाहिये / यदि राजा विक्रमादित्य तुम को यहाँ पर ठहरा हुआ जान जायेगा, तो तुम्हारा तथा मेरा अनिष्ट होगा / राजा लोग दुष्टों का दमन और शिष्ट जनों का पल अपनी पूर्ण शक्ति से करते हैं।' वेश्या की बात सुन कर चोर बोला—'तुम अपने मन में कुछ भी डर न रखो / मैं अपनी बुद्धि से इस प्रकार कार्य करूँगा--कि जिस से हम दोनों का कल्याण हो। मैं इसी समय विक्रमादित्य से मिल कर तथा उसका दुशाला-खेस आदि लेकर यहाँ वापस आ जाऊँगा।' फिर तीसरे दिन रात्रि में वह वेश्या के घर से निकल कर नगर में गया और अदृश्य करण विद्या से अदृश्य हो कर नगर में भ्रमण करने लगा। घूमता हुआ वह चोर धोबी के घर के समीप पहुँचा और वहाँ होने वाली बात सुनने लगा / धोबी अपनी पत्नी से कह रहा था:--" हे प्रिये ! मैं धोने के लिये राजा के वस्त्र लाया हूँ। परन्तु चोर के भय से इस समय मैं सब वस्त्र अपने मस्तक के नीचे रख कर सोता हूँ। तुम सबेरे वस्त्र धोने जाने के लिये मुझे बहुत जल्दी जगा देना। नहीं तो महाराजा कुपित हो जायगा।" देवकुमार का धोबी के यहाँ से राजा के कपड़े चुराना धोबी की यह बात सुन कर उस चोर ने गुप्त रूप से उसके घर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org