________________ 223 मुनि निरंजनविजयसंयोजित संजीवनी विद्या थी, वह भी काल के अधीन हो कर मर गया। इसलिये भाग्य ही प्रधान है / कोई शुभ ग्रह कुछ भी नही कर सकता। जिस के राज्याभिषेक के लिये वसिष्ठ जैसे ब्रह्मर्षि मे लग्न स्थिर किया था, उन रामचन्द्र को भी वन गमन करना पडा / अनेक तीर्थंकर, गणधर, सुरपति, चक्रवर्ती, केशव, राम आदि सब भी जब भाग्य के अधीन हो कर मरण को प्राप्त हुए वहाँ दूसरे लोगों को क्या गणना है ? दूसरे लोग भी बोले कि -- वह छली चोर ही तुम्हारी यह सब दुर्दशा करके रात्रि में कहीं चला गया है / ' राजा ने कहा कि ' हे द्यतकार कौटिक ! तुम इस समय मुझसे कुछ भी भय मत रखो।' इस प्रकार कौटिक को आश्वासन देकर राजा अपने स्थान पर गया तथा भट्टमात्र आदि मंत्री लोग भी उस चोर के वृत्तान्त का स्मरण करते हुए अपने अपने स्थान पर गये और कौटिक भी अपने स्थान पर गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org