________________ NNN मुनि निरंजनविजयसंयोजित 221 प्रातःकाल लोगों के मुख से कौटिक को इस प्रकार की विपत्ति में पडा जान कर मंत्री लोग राजा के पास गए और बोले कि-'हे राजन् ! चूतकार कौटिक की प्रतिज्ञा के अभी तो दो दिन बाकी हैं, फिर आपने इतनी शीघ्रता से उसे क्यों दण्ड दे दिया है। शास्त्र में भी कहा है- " राजा लोग तथा साधु लोग एक ही बार बोलते हैं, कन्या एक बार ही दी जाती है, अन्य मनस्क अवस्था में भी सज्जन पुरुष जो कुछ बोल जाते हैं, वह पत्थर पर लिखे हुए अक्षर के समान अन्यथा नहीं होता है। महादेव ने जो विष पान किया था, उसे आज भी नहीं त्यागते / कूर्म इतनी भारी पृथ्वी को धारण किये हुए है। दुर्वह वडवानल को समुद्र धारण किये हुए है। इस से यह सिद्ध होता है कि सज्जन पुरुष जिस को अंगीकार करते हैं उस का पालन करते हैं / "* मंत्री लोगों की यह बात सुन कर राजा बोला कि ' द्यूतकार कौटिक को मैंने कोई दण्ड नहीं दिया है।' तब मंत्री लोक बोले- हे राजन् ! इस समय वहाँ चल कर देखो कि उस की किस प्रकार की विचित्र अवस्था है?' सकृजल्पन्ति राजानः सकृजल्पन्ति साधवः / सकृत् कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येताणि सकृत् सकृत् // 461 // *अद्यापि नोज्झति हरः किल कालकूट ... . कूर्मों बिभर्ति धरणीमपि पृष्ठकेन / अम्भोनिधिर्वहति दुर्वहवाडवाग्नि मङ्गीकृत सुकृतिनः परिपालयन्ति // 463 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org