________________ wra 220 विक्रम चरित्र करता हूँ, जिससे तुम उस चोर का स्थान शीघ्र ही जान जाओगे और मेरी जटा के समान तुम्हारी भी बड़ी बड़ी लम्बी जटा हो जायेगी। दो घडी दिन बीतने पर निश्चय ही यह सब हो जायगा। इस में कोई सन्देह नहीं।' उस धतकार कौटिक ने योगी के कहने के अनुसार सब काम किया और अपने सेवक के साथ जल में जाकर स्थित हो गया। कौटिक की दुर्दशा फिर वह चोर द्यूतकार कौटिक तथा उस के सेवकों के सब वस्त्र, खड्ग आदि चीजें लेकर अपने स्थान को चल दिया / चलते समय उसने संन्यासी के सब चिह्न वहीं छोड दिये और वेश्या के घर पहुँच कर रात्रि का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। चोर की बातें सुनकर वेश्या बोली कि ' तुम निश्चय ही चोर शिरोमणि हो / क्योंकि इस समय तुमने कौटिक को भी बडे कठिन संकट में डाल दिया है।' प्रातःकाल जल भरने के लिये जब पनिहारि स्त्रीयें सरोवर पर आई तो जल में कौटिक को देखकर बोल ने लगी कि 'यह तो द्यूतकार कौटिक है / उस ने चोर को पकड ने की प्रतिज्ञा की थी, इसी लिये चोर ने इस को इस प्रकार की विचित्र अवस्था में डाल दिया है। इसने बहुत लोगों को ठगा है तथा छल किया है, इसलिये इस लोक में ही इस को उन सब कर्मों का फल प्राप्त हो रहा है, और पर लोक में कोन जाने क्या दशा होगी?' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org