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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 215 ____ काली यह सुन कर सोचने लगी कि निश्चय ही यह लोगों के मुख के सामने से चोरी करने वाला चोर है, क्यों कि इसने इन वेश्याओं को भी अनायास ही ठग लिया / कहा भी है-' जो अवश्य होनेवाला भावी है, वह बड़ा आदमी हो या छोटा सबको होता ही है, नहीं तो नीलकंठ महादेव जो विष को भी पी गये, वह नग्न क्य रहते हैं ? विष्णु जो संसार के रक्षक हैं, उनकी शय्या सर्प की क्यो है ? चन्द्रमा और सूर्य जैसे प्रकाश करने वाले पदार्थ भी ग्रह से पीडित होते हैं ? बड़े बड़े हस्ती, महा भयानक सर्प और आकाश में उड़ने वाले विशालकाय पक्षी भी बन्धन को प्राप्त करते हैं / बड़े बड़े बुद्धिमान् मनुष्य भी दरिद्री देखे जाते हैं। इस बात से यही निश्चय होता है कि भाग्य बहुत ही बलवान् है / ' इसीलिये कुल कपट आदि में निपुण वेश्यायें भी इस अवस्था को प्राप्त हुई। प्रातःकाल महादेव को स्नान कराने के लिये पूजारी महादेव के मन्दिर में उपथिरा हुआ और कूप में जो घटीमन्त्र लगा हुआ था, उसको चलाने लगा, परन्तु वह घटीयन्त्र नहीं चला / उस जलयन्त्र को स्थिर देखकर उसका कारण-जानने के लिये ज्योंही वह कूवे में नीचे देखता है, वैसे ही वहाँ उसने चार नग्न स्त्रियों को अत्यन्त निश्चेष्ट अवस्था में पृथ्वी पर लेटी हुई देखी। यह देख कर उस पूजारीने अपने मन में सोचा कि ये सब शाकिनी अथवा दुष्ट पिशाचिनी * ? या शक्ति अथवा शिकोतरी हैं ? या महामारी व्यन्तरी या राक्षसों की स्त्री हैं ? उन सब की अत्यन्त भयानक आकृति देखकर डर से कॉपता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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