________________ 214 विक्रम चरित्र लोग बिल्कुल अचेत होकर मृतक के समान बाजार में मुह खोले . सोजाते हैं, कुत्ते आदि उस मुख को विवर समझ कर उस में मूत्र आदि कर देते हैं। इसी प्रकार मद्यपान करके मत्त होकर लोग बाजार में नग्न ही सो जाते हैं। चेतना रहित होजाने के कारण अनायास अपनी गुप्त बातों को प्रगट कर देते हैं। जिस प्रकार दीवाल-मित्ति आदि पर बनाये हुए अनेक प्रकार के मनोहर चित्र काजल के लेप से नष्ट होजाते हैं। उसी प्रकार मदिरा पान करने से कान्ति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी आदि सब कुछ नष्ट होजाते हैं / मदिरा पानं कर के लोग भूत, पिशाच, आदि से पीडित व्यक्ति के समान नृत्य करने लगता है, शोकग्रात के समान अनर्थक बहुत बकता है तथा दाह, ज्वर आदि से पीडित व्यक्ति के समान पृथ्वी पर इधर-उधर लेटने लगता है। कूप के घटी यंत्र से बाँधना ___ इस प्रकार ये वेश्याओं भी मदिरा का पान कर के चेतना रहित होगयीं। उन लोगों के चेतना रहित होजाने पर उनके सब बल्ल तथा आभूषण और स्वयं जो धन दिया था वह सब उस सार्थवाह रूप चोर ने ले लिया और पास के उद्यान में महादेव के कूप में लगे हुए अरघट की माला से घटों को उतार कर चेतना शून्य उन वेश्याओं को नग्न ही रज्जु से बांध दिया। किसी दूसरे स्थान से दहीं लाकर उन वेश्याओं के मुख में लगा दिया। फिर वह चोर पूर्ववत् अपने स्थान को चल आया। वहाँ पहुँच कर उस काली नाम की वेश्या को उसने सब आभूषण तथा वस्त्र दिखलाये और सारा वृत्तान्त कह सुनाया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org