________________ 216 विक्रम चरित्र हुआ वह पूजारी दौडता हुआ महाराजा विक्रम के समीप पहुँचा और बोला कि-' शम्भू का कूप और घटीयन्त्र अभी शक्तियों से भरा हुआ है / इसलिये हे राजन् ! वहाँ चलकर शान्ति-क्रिया कीजिये, नहीं तो दुष्टाशय यह सब शक्तियाँ जग उठेंगी, तो नगर में लोगों का बड़ा अनिष्ट करेंगी।' क्यों कि जो अनागत विधाता है और जो हाजर जवाबी बुद्धिवाला है यह दोनों दुनिया में शांति से नींद लेने वाले है कि जिसका भविष्य नष्ट हुआ / राजा आदिका आकर छुडाना उस पूजारी की यह बात सुन कर राजा अत्यन्त आश्चर्य युक्त होकर परिवार (मंत्री आदि) सहित महादेव के मन्दिर के समीप पहुँचा और वहाँ उन चारों वेश्याओं को देखा तथा देखकर मुख फेर लिया। जो उत्तम प्रकृति के पुरुष है वे दूसरे की स्त्री को नग्न देखकर वैसे ही मुख फेर लेते हैं जैसे वर्षा करते हुए मेघ को देखकर बड़े बड़े वृषभ मुख फेर लेते हैं। उन सब को देख कर मंत्री लोग बोले कि " हे राजन् ! ये सब शक्तिया नहीं हैं किन्तु जो चार वेश्याओं आपके आगे प्रतिज्ञा करके गई थी ये हैं। हम लोगों को ऐसा ही लगता है। किसी छली ने कूप के अरघट में इन लोगों को बाँध दिया है। शायद उसी चोर ने इन लोगों की ऐसी दुर्दशा की हो ऐसा ज्ञात होता है।" अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिश्च यः। द्वावेतौ सुखमेधेते यद्भविष्यो विनश्यति // 413 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org