________________ 204 विक्रम चरित्रदयनीय दशा सुनकर 'हर' नामक एक अमात्य शीघ्रता से राजा के समीप जाकर बोला:-" हे राजन् ! मैं आपको प्रातःकालीन प्रणाम करता हूँ। आप छोटे और बड़े दोनों को समान दंड देने बाले हो गये हैं। क्या बबूल और आम, बतक ओर हँस, गद्धा और हस्ती, सज्जन तथा दुजन इन सब को आप समान समझते हैं ? यदि अपना सेवक कोई अपराध करता है, तो स्वामी उसको घर के अन्दर उचित दंड देता है / दुर्जन के दंड के समान सब लोगों के सम्मुख नहीं।" अमात्य हर की बात सुनकर राजाने कहा कि " मैं ने किसको अनुचित दंड दिया है, सो बतलाओ।" तब वह मन्त्री बोला कि'भट्टमात्र को तुमने बेड-हेडी में क्यों डलवाया है ? यदि सन्तान कोई अनिष्ट कार्य करती है, तब भी पिता उस पर अच्छा वात्सल्य रखता है। उसको अनुचित दंड नहीं देता / ' अमात्य हर की बात सुन कर राजा भट्टमात्र के पास गया और उस दशा में उसको देखा तथा शीघ्र ही भट्टमात्र को वेडी से बाहर निकाल कर पूछा कि-' हे भट्टमात्र ! तुम को इस समय यह कष्ट किस कारण से प्राप्त हुआ ? ' भट्टमात्र बोला कि 'मैं यह सब बात यहाँ सब के सामने नहीं कह सकता।' भट्टमात्र की बात सुनकर राजाने सब कुछ कहने के लिए आग्रह पूर्वक उसे पूछा। तब भट्टमात्र ने रात्रि में जो कुछ हुआ था, वह सब वृत्तान्त कह सुनाया। इसके अनंतर रात्रि में चोरने जो कुछ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org