________________ 205 मुनि निरंजनविजयसंयोजित किया था वह सब स्मरण कर भट्टमात्र ने अपने चित्त में अत्यन्त खेद का अनुभव किया / काल बहुत बलवान् है। काल ही सन्मान कराने वाला है। तथा काल ही पुरुष को याचक या दाता बनाता है। चन्द्रमा में कलंक लगाने वाला और कमल की नाल में कंटक लगाने वाला भी काल ही है। समुद्र के जल को अपेय करने वाला, पंडित को निर्धन करने वाला, प्रिय जन का वियोग कराने वाला, सुन्दर पुरुष को कुरूप बनाने वाला, धनाढ्य मनुष्य को कृपण बनाने वाला तथा रत्न जैसे उत्तम पदार्थ को दोष युक्त बनाने वाला एक काल ही है। चन्द्रमा और सूर्य का राहू से पीड़ित होना, हस्ती और सर्प का बन्धन, तथा बुद्धिमान् पुरुषों की दरिद्रता, ये सब देख कर यही निश्चय होता है कि-' विधि ही सब से बलिष्ठ है।' इसलिये भट्टमात्र जैसा बुद्धिमान् पुरुष भी चोर से ठगाया गया। राजा का भट्टमात्र को आश्वासन भट्टमत्र से चोर का वृत्तान्त सुनकर राजा ने पूछा कि ' चोर कैसा है ? उसका स्वरूप कैसा है ? अवस्था कितनी है ? ' मंत्री भट्टमात्र ने उत्तर दिया कि-' हे राजन् ! उसका रूप तथा देह उतीव सुन्दर है। वह अत्यन्त मधुर भाषी है। उसकी अवस्था छोटी है।' यह बात सुनकर राजा बोला कि 'धूर्त लोग तथा चोर इस प्रकार के ही होते हैं। जो बराबर अपनी वाणी आदि से लोगों को सुख देकर वञ्चना करते हैं। उन धूर्त लोगों का मुख कमल-पत्र के समान सुन्दर और कोमल होता है तथा वाणी चन्दन के समान शीतल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org