________________ 200 विक्रम चरित्र हूँ। आम और नीम दोनों का मूल एकत्रित कर देने से वृक्ष होता है, परन्तु आम का सुस्वाद नष्ट होता है, क्यों कि उस में नीम के समान कड़वापन आजाता है। इसलिये दुर्जन का संसर्ग बुद्धिमानों को छोड़ देना चाहिये / दुर्जन के संसर्ग से सतत विपत्ति ही आती है। परन्तु यह भी निश्चय है कि जो कुछ भाग्य में लिखा हुन है, उसका परिणाम सब लोगों को भोगना ही पड़ता है / यह जानकर बुद्धिमान् लोंग विपत्ति होने पर भी कायर नहीं होते / इसलिये मैं भी दुर्जन के संसर्ग से विपत्ति प्राप्त कर के भी धैर्य पूर्वक सहन करता हूँ। क्या करूँ, दूसरा कोई उपाय नहीं हैं। कल वह चोर यहाँ आया था, उस को देख कर मैंने कहा कि तुम्हारी संगति से ही मैं ने इस अत्यन्त दुःखद अवस्था को प्राप्त किया है / इसलिये इस महान् संकट से मेरा उद्धार करो। क्यों कि सच्चे मित्र की मैत्री कभी भी भंग नहीं होती। जैसे सूर्य और दिन दोनों की संगति अखंडित है। क्यों कि सूर्य के बिना दिन नहीं हो सकता और दिन के बिना सूर्य भी नहीं रह सकता। चन्द्रमा ऊपर रहता है और कुमुद बहुत नीचे दूरपर रहता है। इतनी दूरी पर रहने पर भी वह चन्द्रमा को देख कर हँसता है। हजारों युग बीतने पर भी दोनों मिल नहीं सकते परन्तु दोनों का स्नेह कभी भी कम नहीं होता। इसी तरह सच्चे मित्रों की मैत्री कभी नहीं घटती / " इस प्रकार मेरी बातें सुन कर वह दुष्ट चोर बोला कि-'मेरे बायें हाथ में बहुत बड़ा फोडा निकल आया है। इसलिये मैं तुम को अभी इस बेड़ी में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org