________________ विक्रम चरित्र' . वह स्वयं भी चुप चाप उज्जयिनी नगर में चोर को पकड़ने के लिये दिन रात भ्रमण करने लगा। . इधर चोर ने वेश्या से नगर के समाचार पूछे / वेश्या कहने लगी कि—'भट्टमात्र ने गत दीन सभा में प्रतिज्ञा की है कि यदि मैं तीन दिन में चोर को पकड़ कर आप के पास न लाऊँ तो मुझ को चोर का दण्ड देना / इस प्रकार की प्रतिज्ञा करके और राजा को प्रणाम करके तलवार लेकर वह सभा से निकला है। स्थान स्थान में गुप्तरीति से दिनरात भ्रमण करता हुआ विचक्षण भट्टमात्र किसी दिन यहाँ आ गया, तो मेरी क्या दशा होगी ? क्योंकि वेश्या का घर, राजा, चोर, जल, मार्जार, बन्दर, अग्नि तथा मदिरा पीने वाले ये सब कहीं भी विश्वास के योग्य नहीं होते / चोरी रूपी पापी वृक्ष इस लोक में वध और बन्धन रूप ही फल देता है / चोरी के पाप से परलोक में नरक का कष्ट अवश्य भोगना पडता है।' वेश्या की यह बात सुनकर देवकुमार बोला कि 'तुम अपने मन में कुछ भी भय मत रखो। मैं इस प्रकार की चोरी करूँगा कि हम दोनों का कल्याण होगा तथा दोनों को सुख मिलेगा; क्योंकि-उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि, पराक्रम ये छः गुण जिस में हैं, उस को देव भी नहीं जीत सकते / इसलिये तुम अपने मन में कुछ भी चिन्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org