________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित देता है, जल में सब डूब जाता है, पृथ्वी के अन्दर रखे हुओ द्रव्य को यक्ष लोग हरण कर ले जाते हैं या कुपुत्र सब धन को नष्ट कर देता है। इस प्रकार बहुत व्यक्तियों के आधीन में रहने वाला धन अत्यन्त निन्दनीय है।" इस प्रकार अनेक प्रकार की बातों से राजाने कोटवाल को आश्वासन देकर तथा उस को बहुत सा धन देकर राजा कुतूहलपूर्ण हृदय से अपने महल पहुँचा / अपने सचिव आदि परिवार से युक्त होकर सभा के बीच में बैठा और पुनः पान का बीड़ा अपने हाथ में लेकर बोला कि-" इस सभा में कोई ऐसा वीर है, जो चोर को पकड़ कर उसे मेरे पास लावें / जो ऐसा वीर हो वह इस समय मेरे हाथ से पान का बीडा ले ले। राजा की बात सुनकर राजा का मंत्री भट्टमात्र हर्षपूर्वक राजा के हाथ से पान का बीडा लेकर सभा में बोला किभट्टमात्र की प्रतिज्ञा . 'यदि मैं तीन दिन में चोर को पकड़ कर नहीं लाऊँ, तो हे राजन् ! मुझ को चोर का दण्ड देना।' इस प्रकार कह कर तथा राजा को प्रणाम कर सिर नीचा किये हुए वह भट्टमात्र सभा से एकाकी तलवार लेकर निकल गया। उसने द्विपथ, त्रिपथ, चतुष्पथ आदि स्थानों में चारों बाजुः / गली गली में चोर पकड़ ने के लिये अपने दूतों को नियुक्त किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org