________________ विक्रम चरित्र देखकर शीघ्र शीतोपचार करके उसको सचेतन किया / ... चेतना आने पर कोटवाल बोला कि 'चोर ने मेरी सब सम्पत्ति को हर लिया है, अतः इस दुःख से मुझे मूळ आ गई थी / मारे जाने के समय में प्राणी को एक क्षण ही कष्ट होता है। परन्तु धन के हरण होने पर उसके पुत्र-पौत्र सब को कष्ट होता है / मेरा सब अभिमान इस समय नष्ट हो गया। इस लिये हे राजन् ! अब मैं अन्यत्र चला जाऊँगा।' कोटवाल की बात सुनकर राजा बोला कि" तुम इस का कुछ भी दुःख अपने मन में मत करो / वह चोर तो मेरा भी वस्त्राभूषण चुप चाप लेकर चला गया है। इसलिये तुम अपने मन में कुछ भी खेद मत करो लक्ष्मी चंचला है / वह किसी भी स्थान में स्थिर नहीं रहत है। क्योंकिः ___" दान देना, उपभोग करना और नष्ट हो जाना, ये तीन गति सम्पत्ति की होती हैं / जो दान नहीं करता अथवा उपभोग नहीं करता, उस का धन अवश्य ही नष्ट होता है / " x उस कृपण का धन बान्धवगण ले लेने की इच्छा करते हैं, चोर हरण कर लेते हैं, राजा लोग अनेक प्रकार का छल कर के ले लेते हैं, अग्नि एक क्षण में सब को भस्म कर दानं भोगो नाशस्त्रयो गतयो भवन्ति वित्तस्य / यो न ददाति न भुक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति // 24 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org