________________ "188 विक्रम चरित्र ___इसलिये इस समय शीघ्र ही चुपचाप धन और कुटुम्बादि को कहीं गृप्तस्थान में छिपाकर रख देना चाहिये / ऐसा न करने पर आप की प्रतिज्ञा पूरी न होने के कारण राजा आपकी सम्पति का हरण अवश्य कर लेगा। उस कपटी श्यामल की इस प्रकार युक्तियुक्त बात सुनकर कोटवालने कहा कि ' तुमने सब बातें सत्य ही कही हैं / परन्तु मैं क्या करूं / इस समय किसी भी प्रकार से मैं घर नहीं जा सकता / मैं नहीं जानता कि यह राजा मुझे इस समय क्या करेगा ? इसलिये तुम यहाँ से घर जाओ और सबसे मिलकर शीघ्र ही यह काम कर दो। अपनी सब सम्पत्ति तथा परिवार को एकान्त स्थान में रख कर तुम स्वयं भी घर में गुप्तरूप से रहना / ' ___ तब कपटी श्यामल कहने लगा कि ' मैं किस प्रकार वहाँ सबसे कहूँगा कि मैं मामा के पास से आया हूँ तथा मामा ने इस प्रकार करने के लिये कहा है / इसलिये हे मामा ! आप अपने किसी सेवक को यह सब समाचार कहने के लिये मेरे साथ घर भेजो। तब कोटवालने इस कपटी श्यामल के साथ अपने एक सेवक को सब बातें समझा कर घर भेजा / कोटवाल के सेवक के साथ जाते हुए उस कपटी श्यामलने उस सेवक से कहा- कि तुम वहाँ चलकर कोटवालने जो बातें कहने के लिये कहा है, वह सब कह देना, क्यों कि मैं बहुत वर्षों से तीर्थयात्रा करके इस समय लौटा हूँ / तीर्थयात्रा करते करते बहुत समय जाने से शायद मुझको वहाँ कोई भी नहीं पहचान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org