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________________ 1870 . arwwwanSANYLIYON मुनि निरंजनविजयसंयोजित 'तुम्हारी प्रसन्नता से गंगा, गोदावरी के मुख्य मुख्य तीर्थो की यात्रा की है।' यह सब सुन कर कोटवाल ने कहा कि- गंगा जल, गंगा की धूली तथा गोदावरी का जल लाओ। जिस का पान कर तथा उस से सिक्त हो कर अपने शरीर को पवित्र करूँ। तब उस कपटी श्यामलने कावड से गंगा जलादि वस्तुयें निकाल कर ". दी। कोटवाल ने अपने भानजे द्वारा दी हुई चीजें ग्रहण की और अपने आपको पवित्र बनाया। इसके बाद उस कपटी श्यामल ने पूछा कि ' आपका मुख इस . समय इतना उदास क्यों है ? ' इस कपटी श्यामल के ऐसा पूछने पर कोटवाल ने उसके आगे अपनी चोर को पकड़ ने की प्रतिज्ञा कह सुनाई। वह सब सुनकर उस कपटी श्यामल ने कहा कि 'आपने राजा के सामने इस प्रकार की जो प्रतिज्ञा की, वह अच्छा नहीं किया।' क्योंकिः___'काक में पवित्रता, द्यूतकार में सत्य, सर्प में क्षमा, स्त्रियों में कामवासना की शान्ति, नपुंसक मनुष्य में धैर्य, मद्यपान करने वालों में तत्त्वज्ञान की चिन्ता, और राजा का मित्र होना, ऐसा कहीं किसी ने न देखा है और न सुना ही है / + +काके शौचं इतकारे च सत्यं, सर्प शान्तिः स्त्रीषु कामोपशांतिः / क्लीबे धैर्ये मद्यपे तत्त्वचिन्ता, राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा // 181 / / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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