________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 189 सके / इस प्रकार कोटवाल के सेवक से बातचीत करता हुआ वह कपटी श्यामल उस सेवक के साथ कोटवाल के घर पहुँचा / कोटवाल के घर पहुँचकर सेक्कने उसकी स्त्री से कहा कि तुम्हारा यह भानजा श्यामल इस समय तीर्थयात्रा करके आया है / तथा श्यामल की माता से कहा कि तुम्हारा पुत्र यात्रा करके लौट आया है अतः उसका स्वागत करो। कपटी श्यामल ने सेवक की यह सब बाते सुनकर छल से सब का परिचय प्राप्त कर लिया तथा मामी, माता, इत्यादि शब्दों से सम्बोधन करके पृथक् पृथक् सबको प्रणाम आदि करके सबका यथा योग्य विनय किया / श्यामल को बहुत दिन के बाद आया हुआ देख कर उसकी माता आदि अत्यन्त प्रसन्न हुई। कपटी श्यामल ने भी गंगा-जल आदि सब को प्रेम से दिया। इसके बाद कोटवाल के सेवकने कोटवाल की स्त्री आदि से कहा कि -- कोटवालने मेरे मुख से तुम को कहलवाया है कि सब सम्पत्ति शीघ्र ही किसी गुप्त स्थान में छिपाकर रख दो, क्यों कि अभीतक बहुत तलाश करने पर भी चोर नहीं पकडा गया अतः यह नहीं जाना जाता है कि राजा रुष्ट होकर न जाने क्या क्या करेगा। इस प्रकार कोटवाल का सम्बाद सब को कहकर वह सेवक चला गया। और कोटवाल के पास जाकर कहा कि 'आपने जो कुछ करने तथा कहने के लिये कहा था, वह कार्य मैंने पूरा कर दिया है। इधर कोटवाल की स्त्री इस कपटी श्यामल को बुलाकर अत्यन्त भयभीत होती हुई बोली कि 'तुम इसी समय शीघ्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org