________________ स्वजनादि तथा साराही श्रीसंघमें अत्यंत उत्साहका वातावरण फेल गया, श्रीमूलचंद हजारीमलजी, उमेदमल हजारीमलजी तथा कपूरचंद सागरमलजी आदि श्रीसंवने 15-20 दिनकी अल्प स्थिरतामें भी प्रशंसनीय लाभ लीया / एवं चातुर्मासके लिये भी श्रीसंघने विनंति की, परन्तु हमे पंचतीर्थीकी यात्रा कर शोवही श्रीकेशरीयाजी तीर्थकी यात्रा कर पूज्य गुरु महाराजकी निश्रामें आनेका विचार था, इसलिये बीजोवा, बाली, सादडी आदि गांवोकी आगामी चातुर्मासके लिये अत्यन्त आग्रहपूर्ण विनंतिको अस्वीकार करना पडा क्रमशः मुंडारा, सादडी, नाडोल, नाडलाई, घानेराव विगेरे राणकपुरजी होकर मेवाडका पाटनगर उदेपुरसे श्रीधूलेवामंडण श्रीकेसरीयाजीकी यात्रा कर फाल्गुणका मेला कर ईडरके रास्तेसे अमदावाद पूज्य आचार्य श्रीविजयामृतसूरीश्वरजी महाराज साहेबकी निश्रामें चैत्रसुदिमें आये, सं. 2004 के वैशाखमासमें वढवाण शहरमें पू. पा. शासनसम्राट् गुरुदेवकी शुभ निश्रामें श्रीअंजनशलाका व प्रतिष्ठा होनेवाली थी, उस अवसर पर वहाँ जानेकी मेरे मनमें तीन अभिलाषा थी किन्तु गरमीकी तासीरके कारण अमदावादमें ही स्थिरता हुई। खंभातके ओसवाल श्रीसंघका आगामी चातुर्मासके लिये अति आग्रह होनेके कारण पूज्यपाद आ. श्रीविजयामृतसूरीश्वरजी म. सा. की आज्ञानुसार सं० 2004 का चातुर्मास खंभातमें हुआ। श्रीगौतम पृच्छा और धन्य चरित्र व्याख्यानमें वांचा इस चातुर्मासमें श्रीसंघके आगेवानोने उत्साहपूर्ण समयानुसार शासनप्रभावना अच्छी तरह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org