________________ “की, व्याख्यान आदि प्रकृति के कारण इस चातुर्मासमें भी अन्यान्य प्रवृत्तियोंके कारण विक्रमचरित्रका हिन्दी अनुवाद करनेका कार्य आगे न चला और खंभात से विहार कर पुनः अमदावाद आये। पूज्य आ० श्रीविजयामृत-सूरीश्वरजी म० सा० की निश्रामें मेरे विद्यागुरु पू० मुनिवर्य श्रीरामविजयजी महाराजके एक नेत्रमें मोतीयाका ओपरेशन करवाया, कुच्छ शान्ति होने के बाद पू० आ० श्रीविजयामृतसूरीश्वरजी म० सा. बोटादमें गांव बाहर-पराके मन्दिरकी प्रतिष्ठाके अवसर पर पधारते थे, उस समय मैंने भी बोटादके प्रति विहार के लिये तैयारी की किन्तु एकाएक मेरा शरीर रोगापत्तिमें गिरा, इस लिये मेरा विहार बंद रहा और अमदावादमें मेरी स्थिरता हुई / शरीर स्वस्थ होनेके बाद विक्रमचरित्र का हिन्दी अनुवादका कार्य पुनः आरंभ किया और क्रमशः आगे बढने लगा, 'ग्रंथमाला' की तरफसे चित्र, ब्लोक वगेरे कार्य भी चलाया और छपवानेका विचार चल रहा था, किन्तु आवश्यक अनुकूलता न होनेके कारण छपवानेका कार्य आरंभ न हुआ और दिन-प्रतिदिन अधिक समय बीतने लगा, सं० 2005 का चातुर्मास अमदावाद ही पू. मुनिबर्यश्री रामविजयजी म. श्री की शुभ निश्रामें हुआ। महुवामें सं० 2005 के आसो मासकी अमावास्याके दिन शासनसम्राट् परमोपकारी पूज्यपाद गुरुदेवका स्वर्गगमन होनेसे सर्वत्र जैन समाजमें शोक का बादल फेल गया, प्रभावशालिमहापुरुषके स्वर्गवाससे सारे जैन समाजमें बडी भारी खोट पडी,क्या कीया जाय ? 'तुट्टी उस की बुद्दी नहि' यह लोकोक्ति अनुभव सिद्ध है। महुवामें जो शासन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org