________________ श्रीकोरटाजी तीर्थकी यात्रा कर जाकोराजी तीर्थकी यात्रा कर . खीमेल होकर राणीगाव आये / यहाँ पर बीजोवा श्रीसंघके आगेवान बीजोवा पधारनेके लिये विनंति करने आये थे / वहाँसे बीजोवा आये। यह पूज्य मुनिवर्य श्रीशिवानंदविजयजी म. की जन्मभूमि थी और दीक्षाके बाद प्रथम ही करीब 20 वर्षसे यहां आवागमन हुआ, उससे कुटुंबीजनमें और सारा श्रीसंघमें अत्यन्त उत्साहका वातावरण दिखाई दे रहा था, स्वजन और श्रीसंघने अट्ठाइ-महोत्सव, पूजा, प्रभावना, व्याख्यानश्रवण आदि शासनप्रभावनाके शुभ कार्य अच्छे किये थे / 15-20 दिनकी हमारी अल्प स्थिरतामें भी श्रीसंघने शासनप्रभावनाका अच्छा लाभ लीया, एवं चातुर्मासके लिये अति आग्रहसे विनंति की। पोष वदि 10 का श्रीवरकाणाजीमें श्रीपाश्वनाथजीका जन्मकल्याणकका मेला था। उस अवसर पर विजोवासे विहार कर श्रीसंघके साथ वहाँ आये, श्रीवरकाणाजी तीर्थपति श्रीपार्श्वनाथजी के दर्शन कर जन्म सफल किया। यहाँ मेरे संसारीपक्षके बडे भ्राता श्रीमूलचंद हजारीमलजी आदिने बाली पधारनेकी आग्रहपूर्ण विनंति की, किन्तु यहाँसे पुनः बिजोवा जाना था उससे बाली जानेका कुछ निश्चित निर्णय नहि किया, वरकाणाजीसे बिजोवा आये बाद में मूलचंदजी बालीके श्रीसंघके आगेवान व्यक्तियोंको लेकर पुनः विनंति करने बिजोवा आये। मूलचंदजीने बीजोवामें घर दीठ श्रीफलकी प्रभावना की / आग्रह पूर्ण विनंति के कारण बिजोवासे घणी होकर बाली आये, दीक्षाके बाद पंद्रह वर्षके अनन्तर प्रथम ही यहाँ आगमन होनेके कारण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org