________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित पुत्रों के साथ साथ स्वयं भी भार वहन करती है। इसी प्रकार सुगन्धित पुष्पों से युक्त एक ही वृक्ष संपूर्ण वन को सुवासित कर देता है। उसी तरह सुपुत्र भी कुल को प्रकाशित करता है। इसलिये तुम जैसे सुपुत्र के नहीं रहने से मेरी अवस्था अति दयनीय हो जायेगी।" माता की यह बात सुन कर देवकुमार ने सुकोमला को प्रणाम किया और बोला कि-'हे मात ! यदि मैं जीवित रहूँगा तो यहाँ आकर पुनः शीघ्र ही तुम को वहाँ ले जाऊँगा।' सुकोमला बोली ' हे पुत्र ! तुम जो कुछ भी कहते हो वह सब सत्य है / वे ही पुत्र कहलाने के योग्य हैं जो अपने माता-पिता का हित करते हैं। ऐसा कहा भी है-- “जो अपने निर्दोष चरित्र से अपने माता-पिता को प्रसन्न करे ऐसा पुत्र, अपने स्वामी के ही हित की सदैव इच्छा करे ऐसी स्त्री, और दुःख में तथा सुख में समान व्यवहार रखने वाला मित्र, संसार में पुण्यशाली को ही मिलते हैं।"x दीप विद्यमान वस्तु को ही प्रकाशित करता है। परन्तु पुत्र xप्रीणाति यः सुचरितैः पितरं स पुत्रो, . यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत् कलत्रम् / तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं यद् / एतत् त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते // 50 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org