________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 165 की रक्षा के लिये दण्ड धारण करने वाला अवन्ती नगर में शीघ्र जा रहा हूँ।"+ पुत्रका श्लोक पढकर पिताका पता लगाना ___, इस प्रकार के उन अक्षरों को पढ़ने से देवकुमार अत्यन्त हर्षित हो गया। अपने पुत्र को इस प्रकार हर्षित देख कर सुकोमला ने पूछा कि 'हे पुत्र ! क्या तुम को पिता का स्थान ज्ञात हो गया ? क्या तुम्हारा पिता आ गया है ? ' देवकुमार बोला कि 'आपकी कृपा से मैंने अपने पिता का पता लगा लिया है। तब सुकोमला ने फिर पूछा कि ' तुम्हारा पिता कहाँ है, वह स्थान मुझ को भी बतलाओ।' . तब देवकुमार बोला कि-'हे माता ! मैं पहले वहाँ जाऊंगा। जहाँ मेरे पिता हैं। इसके बाद शीघ्र ही मैं तुम को वह स्थान बतलाऊँगा।' तब माता ने फिर से पूछा कि 'जिस स्थान पर देवता लोग जाते हैं, उस स्थान पर तुम कैसे जा सकोगे ?' ... सुकोमला के ऐसा कहने पर देवकुमार ने कहा कि ' मैं देव का पुत्र हूँ। इसलिये उस के समान ही पराक्रमशाली हूँ। वहाँ जाने +अवन्तीनगरे गोपः परिणीय नृपांगजाम् / गां पातुं दण्डभृत् पद्मोत्करक्रीडापरो ययौ // 36 // दृष्टे च पुरुषे द्वेष्टां कुर्वती काष्ठभक्षणम् / अहमेकोऽधुना वीरः परिणीय रयादगाम् // 37 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org