________________ विक्रम चरित्र मन में विचार किया कि इस ने अनेक प्रकार से हमारी हानि की है। इस की अतुल धन राशि से इस नगर के कितने ही वणिकपुत्रों का अच्छा व्यवसाय चल सकता है। अपने मन में ऐसा सोचकर विक्रमादित्य ने उस चोर से कहा कि 'तू ! मेरे साथ युद्ध कर / ' जो वीर होते हैं वे ललकारने पर शीघ्र ही तैयार हो जाते हैं। अतः विक्रमादित्य की ललकार से उत्साहित हुआ वह चोर एक उखड़े हुए वृक्ष को ही शास्त्र बना कर विक्रमादित्य को मारने के लिये दौड़ा / जब तक वह चोर उस वृक्ष से विक्रमादित्य पर प्रहार करे, तब तक बीच में ही स्फूर्ति से विक्रमादित्य ने तलवार से चोर पर जोर से प्रहार किया / तलवार के प्रहार से खप्पर पृथ्वी पर गिर पड़ा / और विचार करने लगा की एक मामुली मनुष्यने मेरा घात कीया विक्रमादित्य उसको खिन्न देख कर आश्वासन देने के लिये बोले कि 'मैं स्वयं ही अवन्ती नगर का राजा विक्रमादित्य हूँ ! मेरे साथ युद्ध करके तुझ को खेद नहीं करना चाहिये / जो वीर हैं, वे वीरों के साथ युद्ध करते हुए यदि युद्ध क्षेत्र में मारे जाते हैं, तो कभी खेद नहीं करते / महात्माओं की भी यही मर्यादा है।' इस प्रकार राजा विक्रमादित्य से आश्वासन पाने पर खप्पर चोर प्राण त्याग कर परलोक गया। क्योंकि मनुष्य का जब तक पूर्वोपार्जित पुण्य रहता है, तब तक ही चन्द्र बल, तारा बल ग्रह बल, या पृथ्वी बल, सहायक होता है, तब तक ही उसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org