________________ 151 मुनि निरंजनविजयसंयोजित " रे दुष्ट चोर ! इसी तलवार से मैं इसी समय तेरी अवन्तीपुर की राजधानी पाने की इच्छा पूर्ण कर देता हूँ।" यह सुनते ही वह-चोर डरकर शीघ्रता से गुफा में अन्यत्र जाकर छिप गया और सोचने लगा कि हाय, मैं स्वयं ही अपने वध के लिये इसको यहाँ बुला कर ले आया / अथवा किसी पुरुष या देवदानव ने ही इस दुरात्मा को मेरे वध का उपाय बतला दिया है / उसको गुफा में छिपा हुआ जान कर विक्रमादित्य ने अग्निवैताल से कहा कि उस चोर को गुफा में से खोज कर शीघ्र ही मेरे सामने ले आओ। जिससे उस दुरात्मा को मैं अपनी तलवार के प्रहार से शिक्षा दूँ / तब अग्निवैताल ने गुफा के भीतर गुप्त स्थान में छिपे हुए खप्पर को बाहर निकाल कर राजा के आगे लाकर रख दिया। खप्परकी मृत्यु व राजा की विजय उस चोर को अच्छी तरह से देख कर राजा ने अपने. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org