________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित मार्ग से एक देवी विमान में बैठकर जा रही थी, उसका विमान स्तब्ध होकर रुक गया। तब उस चण्डिका देवी ने सोचा कि कौन मेरे विमान को इतनी दृढता से पकड़ रहा है, जिस से मेरा विमान सहसा अटक गया है। इधर-उधर देखने पर जब नीचे पृथ्वी की तरफ देखा, तो वह देखती है कि एक बालक खप्पर में रखा हुआ है। तब चण्डिका ने जाना कि इसी बालक के प्रभाव से मेरा विमान स्तंभीत हो गया है। यह बालक अतीव बलवान होगा और बालक खप्पर में है, अतः इसका नाम भी * खप्पर ' ही रखा जाये, यह सोच कर वह नीचे उतर आई और उस को चण्डिका देवी ने प्रेम पूर्वक अपने हाथों से उठाया और विमान में ले आई। देवी का खप्पर को वरदान . इसके बाद उसे देवी अपनी गुफा में ले आई और पुत्र के समान लालन-पालन करने लगी / जब वह खप्पर आठ वर्ष का हुआ, तब चण्डिका देवी ने उसको बड़े बड़े महात्माओं के लिये भी अप्राप्य हो वैसे वरदान दिये / चण्डिका देवी ने कहा कि-'तुम्हारी मृत्यु इसी गुफा में होगी। इस गुफा के बाहर कोई देवता भी तुमको नहीं मार सकेगा। यह खड्ग लो। इसके प्रभाव से तुम को कोई भी नहीं जीत सकेगा। गुफा के बाहर तुम अदृश्य होकर रह सकोगे और जब इस गुफा में आओगे तब ही तुम्हारा शरीर दृश्य होगा। चण्डिका देवी से वह इतना वर प्राप्त करके सब जगह निर्भय होकर घूमने लगा। अब वह द्रव्य या स्त्रियों का अपहरण आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org