________________ 134 mmmmarmarmirmirmmmmmmmmrammawrammar.me..... विक्रम चरित्र गया था, कुछ द्रव्य उपार्जन कर के विदेश से अपने घर आया और अपने पिता के पास जाकर पिता कह कर प्रणाम किया। तब धनेश्वर अपने मन में विचार करने लगा कि यह मेरा पुत्र है, या पहले से जो मेरे पास रहता है वह ?' फिर कुछ अपने मन में विचार कर पूछा कि-'आप किस के अतिथि हैं जो यहाँ आये हैं ? / यह वचन सुन कर वह सच्चा गुणसार बोला कि 'मैं आप का पुत्र हूँ तथा दूर देश से लोट आया हूँ।' ,. यह सुनकर कपटी गुणपार बोला कि-'रे पापिष्ठ! धूर्त !2 क्या तू मुझ से कपट करने के लिये ही इस नगर में आया है ? क्या इस प्रकार छल कर के मेरा सर्वस्व लेना चाहता है ? मैं तुझे सावधान कर देता हूँ। यदि तू फिर भी ऐसा बोलेगा तो यहाँ पर बड़ा अनर्थ हो जायगा। क्या तू मेरा बल नहीं जानता अथवा किसी से सुना नहीं ! सच्चा गुणसार भी इसी प्रकार उस कपटी गुणसार को फटकारने लगा / यहाँ पर जितने लोग उपस्थित थे सब बड़े संशय में पड़ गये, क्योंकि दोनों वा वरूप समान था। एक समान ही बोरते थे। दोनों अपने अपने चिह्न भी समान ही बतलाते थे। दोनों एक से ही चलते भी थे। दोनों में किसी भी प्रकार का भेद नहीं था। इस प्रकार कौन सच्चा गुणसार है और कौन कपटी है, इसका निश्चय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org