________________ 133 ANANANNA मुनि निरंजनविजयसंयोजित कुल को बढ़ाने वाले तुम अकेले ही मेरे पुत्र हो'। वह कपटी गुणसार बराबर घर का सब काम करता हुआ धनेश्वर सेठ के मन को बहुत प्रसन्न रख कर अलौकिक सुन्दरता से युक्त उस रूपवती के साथ भोग विलास करता हुआ सुखपूर्वक उसके घर में छल से रहने लगा। कहा भी है कि-"जैसे जल में तेल डालने पर फैलने लगता है, परन्तु घृत डालने से वह जम कर संकुचित हो जाता है। ठीक वैसे ही नीच प्रकृति वाले मूर्ख मनुष्य द्रव्य प्राप्त कर अत्यन्त अभिमान करने लगते हैं, परन्तु जो सत्पुरुष हैं वे किसी प्रकार का अभिमान नहीं करते जैसा कि पंडितों ने दृष्टान्त देकर बतलाया है कि: "जैसे अग्नि से उत्पन्न हुआ धुआँ जब किसी प्रकार मेघपद को प्राप्त करता है, मेघ बन जाता है, तब वह अपनी जनेता अग्नि को ही वर्षा के जल से शान्त कर देता है / उसी प्रकार अधम मनुष्य भाग्य संयोग से प्रतिष्ठा को प्राप्त कर अपने भाई-बन्धुओं और स्वजन आदि का ही तिरस्कार करता है " / * सच्चे गुणसार का घर आना इधर धनेश्वर का सच्चा पुत्र गुणसार जो व्यापार के लिये विदेश धूमः पयोधरपदं कथमप्यवाप्य, वर्षाम्बुभिः शमयति ज्वलनस्य तेजः / दैवादवाप्य ननु नीचजनः प्रतिष्ठां, प्रायः स्वबन्धुजनमेव तिरस्करोति // 111 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org