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________________ 132 विक्रम चरित्र ___कहा भी है कि देवता लोग सदा विषय में आसक्त रहते हैं, नारकी जीव अनेक प्रकार के दुःख से व्याकुल रहते हैं और पशुओं में तो किञ्चित् मात्र भी विवेक नहीं रहता है। केवल मनुष्य भव में ही धर्म की साधनसामग्री मिलती है / वह तो पिशाच ही ठहरा / उसको दुराचार प्रिय था। पिशाच का गुणसार का रूप लेना गुणसार के जाने के बाद ,पिशाच ने गुणसार के समान अपना रूप बनाया और बहुत सा धन लेकर धनेश्वर शेठ के समीप में आया और उसे पिता कह कर प्रणाम किया / इस को गुणसार समझ कर शेठ बोला कि'तुम सब चीजें किस के पास छोड़ कर इस समय लौट कर फिर यहाँ आये हो / इस का क्या कारण है, सो कहो ?' धनेश्वर के ऐसा पूछने पर वह कपटी गुणसार बोला कि-' मार्ग में एक सिद्ध ज्ञानी से मेरी मुलाकात हुई / उसने कहा कि यदि तुम विदेश जाओगे तो तुम्हारी मृत्यु अवश्य हो जायगी। इसलिये तुम अपने घर लौट जाओ। यह सुनकर बेचने के लिये जितनी चीजें थीं वे सब मैंने वही तुरत बेच दी और सब द्रव्य मैं अपने साथ ले आया हूँ।' यह सुनकर उसका पिता बोला:-" हे पुत्र! तुम लौट कर चले आये यह बहुत अच्छा किया। क्योंकि सब गुणों से युक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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