________________ 128 विक्रम चरित्र चक्रेश्वरी की स्तुति और उसकी प्रसन्नता वह घूमता हुआ अपने इष्ट देव के मन्दिर में गया और वहाँ जाकर बहुत भक्ति से देवी का ध्यान करता हुआ अच्छे अच्छे स्तोत्रों से उनकी स्तुति करने लगा। HLNDANT303ए म FOR RITAERMAN माउलटे. राजा विक्रमादित्य ने अत्यन्त प्रेम से देवी की स्तुति की, जिससे श्रीचक्रेश्वरी देवी प्रसन्न हुई और प्रकट होकर बोली कि-' हे महाराज! मैं तुम्हारी इस अपूर्व भक्ति से प्रसन्न हूँ। इस लिये तुम्हारी जो इच्छा हो, वह वर मुझ से माँग लो, जिससे देवता का दर्शन सफल हो। क्यों कि जैसे दिन में बिजली का चमकना व्यर्थ नहीं जाता, आँधी या पानी कुछ होता ही है, रात में मेघ का गर्जन करना व्यर्थ नहीं होता, स्त्री तथा बालक का वचन व्यर्थ नहीं होता, इसी प्रकार देवता का दर्शन भी निष्फल नहीं होता। तथा जैसे भोजन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org