________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 127 इस नगर में हमेशा चोरी करता है, वही चोर आपकी पत्नी को भी चुरा कर ले गया है, ऐसा प्रतीत होता है।" यह सुनकर राजा विक्रमादित्य ने मन्त्रीयों को साथ बैठा कर विचार किया और अपनी पत्नी को खोजने के लिए सभी दिशाओं में अपने व्यक्तियों तथा सिपाहियों को भेजा। घोडे सवार, गुप्तचर आदि को भी भेजा। स्वयं राजा की पत्नी का हरण हो जाय, यह गजब की बात है। अतः विक्रमादित्य खूब गुस्से हुआ और नये नये उपाय सोचने लगा। राजाका नगरमें घूमना ___इसके बाद राजा स्वयं तलवार हाथ में लेकर रात में अकेला ही गुप्त वेशमें नगर में चुप चाप घूमने निकल पडा। राजाने यह बात गुप्त रखी, क्यों कि जे बात अपने मनमें रहती है, वही गुप्त रह सकती है। दूसरे या तीसरे आदमी के जान लेने पर 'षट्कर्णो भिद्यते मंत्रः' इस कथनानुसार वह बात गुप्त नहीं रह सकती। इसलिये राजा विक्रमादित्य निर्भय होकर अकेला ही प्रजाकी रक्षा करने के लिये तथा चोर को पकड़ने के लिये रात में जगह जगह गुप्त रूपसे घूमने लगा। 'दुष्ट को दंड देना, अपने कुटुंबियों का सन्मान करना, न्यायपूर्वक प्रजा के ऊपर शासन करके राज्य के खजाने को बढाना, धनवान व्यक्तियों पर धन के लोभ से पक्षपात नहीं करना, ये पाँच कार्य राजाओं के लिये पाँच महा यज्ञ के समान कहे गये हैं। इस लिये राजा विक्रमादित्य रात भर नगर में गुप्त रूपसे घूमने लगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org